वाह ! कैसा सुन्दर दिन .पूरा विश्व एक साथ एक वैश्विक पर्व मना रहा था कल.महिलाओं को समर्पित पूरा एक दिन .महिलाएं तो धन्य और उपकृत .सुबह से ही महिला दिवस की शुभकामनाओं का आदान -प्रदान जोरो पर .महिला उत्थान के विषय चर्चा में .महिलाओं को अर्पित कवितायें और महिला विषयों से अटे पड़े ब्लोग्स .सुन्दर ! किन्तु कुछ दृश्य महिला दिवस पर प्रस्तुत हैं मेरी नज़र से -
दृश्य १ : गृहणिया सुबह उठी .दूध लिया .घर में झाड़ू पोंछा किया.नाश्ता बनाया .बच्चों को तैयार किया .पति के जूते,टाई,मोज़े ,ऑफिस का सामान सम्भलाया और दोपहर के खाने में जुट गयीं
दृश्य २ : कामकाजी महिलाएं उठी .दूध लिया . नाश्ता बनाया .बच्चों को तैयार किया .पति के जूते,टाई,मोज़े ,ऑफिस का सामान सम्भलाया ,खुद तैयार हुई और ऑफिस के लिए निकलने से पहले दोपहर का खाना भी बनाया और फिर महिला दिवस की नई ताजगी भरी हवा में ऑफिस की ओर रवाना हो गयीं.
दृश्य ३ :भारतीय मुफ्तखोरी से मज़बूर (कृपया इसे अन्यथा न लें क्योंकि यही तो भारतीयों का गहना है जहाँ मुफ्त का मिले खूब उडाओ ) महिलाएं राजस्थान रोडवेज़ की बसों में चढ़ने को आतुर ,धक्का -मुक्की ,गाली -गलोच,न बुजुर्गों का लिहाज़ न परीक्षा देने जाते बच्चों का ध्यान .बस की खिड़की से घुसकर जगह सुरक्षित .कंडक्टर बेहाल .रोजाना काम पर जाने वाले बदहाल .भाई महिला दिवस है.महिलाओं को सरकार की ओर से मुफ्त यात्रा तो आज तो वहां भी जायेंगे जहाँ जाना ही नहीं है .घर का काम तो बिटिया संभाल ही लेगी वैसे भी वो चल तो नहीं सकती उसकी 'परीक्षा ' जो चल रही है .
दृश्य ४ : पुरुष ,महिलाएं सभी सहकर्मी सदैव की भांति काम में जुटे मगर थोड़ी -थोड़ी देर में एक फुर्री छोड़ दी जाती 'अरे भई आज महिला दिवस है आज तो सम्मान करना पड़ेगा .' थोड़ी ही देर में कोई अन्य पुरुष कहता
'हें भई पुरुषों ने क्या बिगाड़ा है एक पुरुष दिवस भी होना चाहिए .' सब अपनी अपनी समझ से महिला दिवस की
उपयोगिता पर विचार रख रहे हैं .चलो कोई बात नहीं एक दिन का ही सही महिला विचार तो है .
दृश्य ५ : अभी -अभी एक सज्जन अपने मित्रों की मंडली में आये है .चाय की थड़ी पर बैठे मित्रों में 'ओहो ' का स्वर जोर पकड़ रहा है .बधाइयाँ दी जा रही है 'तो सगाई हो गई पक्की ' ,'बेटा अभी तो मन में लड्डू फूट रहे हैं ,असलियत तो बाद में पता चलेगी .हम तो भुगत -भोगी हैं भईया.'
दृश्य ६ : परीक्षा देने जाने की भीड़ है .लड़कियां भी है और लड़के भी .श्रुति डरी-डरी आगे चल रही है क्योंकि एक लड़का कई दिनों से उसके पीछे पड़ा है.श्रुति सोच रही है रोज़ तो पीछा करता ही है पर आज तो महिला दिवस है .क्या अलग है आज? रोजाना जैसा ही तो है .
दृश्य 7 : कुछ लोग लेखन ,व्याख्यानों ,रैलियों ,नारों में लगे हैं .सोच रहे हैं एक न एक दिन असर होगा तो सही .
आखिर महिला दिवस जो है !