Friday, 25 February 2011

खुली खिड़की से 
बाहर झाँकते हुए
सोच रही हूँ ,
नारी हूँ ....
किन्तु वह क्या है 
जो नर सा नहीं 
नारी सा है ?
चेतना का वह 
कौन सा स्तर है 
जो नर व नारी को 
अलग कर देता है?
देख रही हूँ ...आस -पास 
एक नारी की दृष्टि से 
किन्तु एक नर कैसे देखता है 
अपना आस -पास ?
आखिर एक पुरुष 
किस नज़रिए से देखता है उन सब को 
जिन्हें मैं 'एक नारी ' देख रही हूँ ?
आखिर कैसा है 
एक पुरुष होना ?
सोच रही हूँ ....
एक नारी खिड़की से बाहर झाँकते हुए 
देख रही हूँ 
खुद को आंकते हुए .
कभी बाहर तो कभी 
भीतर झाँकते हुए ...नारी हूँ .......