खुली खिड़की से
बाहर झाँकते हुए
सोच रही हूँ ,
नारी हूँ ....
किन्तु वह क्या है
जो नर सा नहीं
नारी सा है ?
चेतना का वह
कौन सा स्तर है
जो नर व नारी को
अलग कर देता है?
देख रही हूँ ...आस -पास
एक नारी की दृष्टि से
किन्तु एक नर कैसे देखता है
अपना आस -पास ?
आखिर एक पुरुष
किस नज़रिए से देखता है उन सब को
जिन्हें मैं 'एक नारी ' देख रही हूँ ?
आखिर कैसा है
एक पुरुष होना ?
सोच रही हूँ ....
एक नारी खिड़की से बाहर झाँकते हुए
देख रही हूँ
खुद को आंकते हुए .
कभी बाहर तो कभी
भीतर झाँकते हुए ...नारी हूँ .......