Tuesday, 8 March 2011

Mahila Divas

वाह ! कैसा सुन्दर दिन .पूरा विश्व एक साथ एक वैश्विक पर्व मना रहा था कल.महिलाओं को  समर्पित पूरा एक दिन .महिलाएं तो धन्य और उपकृत .सुबह से ही महिला दिवस की शुभकामनाओं का आदान -प्रदान जोरो पर .महिला उत्थान के विषय चर्चा में .महिलाओं को अर्पित कवितायें और महिला विषयों से अटे पड़े ब्लोग्स .सुन्दर ! किन्तु  कुछ दृश्य महिला दिवस पर प्रस्तुत हैं मेरी नज़र से -
 दृश्य  १ : गृहणिया सुबह उठी .दूध लिया .घर में झाड़ू पोंछा किया.नाश्ता बनाया .बच्चों को तैयार किया .पति के जूते,टाई,मोज़े ,ऑफिस का सामान सम्भलाया और दोपहर के खाने में जुट गयीं 
 दृश्य  २ : कामकाजी महिलाएं उठी .दूध लिया . नाश्ता बनाया .बच्चों को तैयार किया .पति के जूते,टाई,मोज़े ,ऑफिस का सामान सम्भलाया ,खुद तैयार हुई और ऑफिस के लिए निकलने से पहले दोपहर का खाना भी बनाया और फिर महिला दिवस की नई ताजगी भरी हवा में ऑफिस की ओर रवाना हो गयीं.
दृश्य  ३ :भारतीय मुफ्तखोरी से मज़बूर (कृपया इसे अन्यथा न लें क्योंकि यही तो भारतीयों का गहना है जहाँ मुफ्त का मिले खूब उडाओ ) महिलाएं राजस्थान रोडवेज़ की बसों में चढ़ने को आतुर ,धक्का -मुक्की ,गाली -गलोच,न बुजुर्गों का लिहाज़ न परीक्षा देने जाते बच्चों का ध्यान .बस की खिड़की से घुसकर जगह सुरक्षित .कंडक्टर बेहाल .रोजाना काम पर जाने वाले बदहाल .भाई महिला दिवस है.महिलाओं को सरकार की ओर से मुफ्त यात्रा  तो आज तो वहां भी जायेंगे जहाँ जाना ही नहीं है .घर का काम तो बिटिया संभाल ही लेगी वैसे भी वो चल तो नहीं सकती उसकी 'परीक्षा ' जो चल रही है .
दृश्य  ४ : पुरुष ,महिलाएं सभी सहकर्मी सदैव की भांति काम में जुटे मगर थोड़ी -थोड़ी देर में एक फुर्री छोड़ दी जाती 'अरे भई आज महिला दिवस है आज तो सम्मान करना पड़ेगा .' थोड़ी ही देर में कोई अन्य पुरुष कहता 
'हें भई पुरुषों ने क्या बिगाड़ा है एक पुरुष दिवस भी होना चाहिए .' सब अपनी अपनी समझ से महिला दिवस की  
उपयोगिता पर विचार रख रहे हैं .चलो कोई बात नहीं एक दिन का ही सही महिला विचार तो है .
दृश्य  ५ : अभी -अभी एक सज्जन अपने मित्रों की मंडली में आये है .चाय की थड़ी पर बैठे मित्रों में 'ओहो ' का स्वर जोर पकड़ रहा है .बधाइयाँ दी जा रही है 'तो सगाई हो गई पक्की ' ,'बेटा अभी तो मन में लड्डू फूट रहे हैं ,असलियत तो बाद में पता चलेगी .हम तो भुगत -भोगी हैं भईया.'
दृश्य  ६ : परीक्षा देने जाने की भीड़ है .लड़कियां भी है और लड़के भी .श्रुति  डरी-डरी आगे चल रही है क्योंकि एक लड़का कई दिनों से उसके पीछे पड़ा है.श्रुति सोच रही है रोज़ तो पीछा करता ही है पर आज तो महिला दिवस है .क्या अलग है आज? रोजाना जैसा ही तो है .
दृश्य  7 : कुछ लोग लेखन ,व्याख्यानों ,रैलियों ,नारों में लगे हैं .सोच रहे हैं एक न एक दिन असर होगा तो सही .

                              आखिर महिला दिवस जो है !

Thursday, 3 March 2011

रास्ते पर कुछ सोचते हुए श्रेया आगे बढ़ रही थी ..."कितना काम करना पड़ता है...बाबा रे ! किसी को मेरी परवाह तक नहीं बस सबके काम करते रहो ...किसी को मेरी परवाह है क्या ?बस मैं ही पिसती रहूँ ...चक्की के पाटों की  तरह  चलती रहूँ बस घर्र ..घर्र घर्र ."सोचते- सोचते ही एक ऑटो  वाले को रुकवाया और ऑफिस की ओर की सड़क पर ऑटो के आस -पास से गुज़रते हुए मकानों ,बिल्डिंगों ,पेड़ों  को देखते हुए सोचने लगी कि ये सब गुज़र रहे हैं या वह  गुज़र रही है ? समय बीत रहा है या वह बीत रही है ? अभी तक ज़िन्दगी को जीती आ  रही है या ज़िन्दगी जैसा कुछ है ही नहीं ? "भैयाजी ज़रा जल्दी चलाओ देर हो रही है ."ऑटो वाले को देखे बिना ही उसने कहा ." पहले तो सारा काम करो फिर ऑटो के धक्के ,फिर बॉस की जी हुजूरी ,फिर घर में इनकी जी हुजूरी ...आखिर कितना करूँ मैं ?" अपने मैंपन से थोड़ा बाहर निकली तो नज़र पड़ी, दो आदमी सड़क के किनारे गुत्थम -गुत्था हो रहे है.एक दूसरे को धक्का देते हुए,टांग खींचते ओर मुंह नोचते हुए खी खी करते हंस रहे हैं "न जाने कौन सा खजाना मिल गया है दोनों को जो बावले हुए जा रहे हैं? "परंपरागत शब्द थे, श्रेया ने बचपन से अब तक कई बार  सुने थे.जब भी कहने का मौका मिलता तो वह चूकती न थी ."क्या ये ही ज़िन्दगी है बस करते रहो ,करते रहो ,करते रहो ?"सोच रही थी ."मैडम आ गया गाँधी सर्किल ." कांपती ,भरभराई दबी सी आवाज़ सुनकर श्रेया ने ऑटो वाले की ओर देखा .तकरीबन ७० से ७२साल  का बुड्ढा शरीर एक हाथ से ब्रेक दबाये ऑटो की फट -फट -फट के बीच -बीच में ज़ोरों से सांस भीतर खींचता था और धीरे से बाहर छोड़ देता था   .सलेटी रंग के  पठानी कुरते के हाथ से कोहनी बाहर झांक रही थी .टूटी -फूटी चप्पलों की बत्तियों को किन्ही जर्जर ,कंपकंपाते हाथों ने शायद खुद ही सिला था .चेहरे पर कोई भाव पदना आसान नहीं था चेहरे  की झुर्रियों के पीछे फिर भी एक संतोष का भाव ज़रूर दीखता था .श्रेया के  पिछले ३७ साल उसकी आँखों के आगे घूम  आये थे .''मैडम ज़रा जल्दी भाडा दे दीजिये ,वहां शायद कोई सवारी है."श्रेया उसे भाड़ा  देकर  बहुत कुछ पूछना चाहती थी मगर वो कहाँ सुनने वाला था उसे तो अभी बहुत काम करना था .बहुत सारा काम .......