Friday, 1 April 2011

MUJHE TO YAD NAHI RAHTA PAR.....

मुझे तो याद नहीं रहता ,
पर रास्ते से गुज़रती हूँ 
तो लोगों का घूरना याद दिला देता है कि मैं लड़की हूँ .
मुझे तो याद नहीं रहता ,
पर भीड़ का फायदा उठा 
किसी का मुझे छूकर निकल जाना 
याद दिला देता है कि मैं लड़की हूँ .
मुझे तो याद नहीं रहता ,
पर मुझे ठहाके लगाते देख दादी का टोकना 
याद दिला देता है कि मैं लड़की हूँ .
मुझे तो याद नहीं रहता ,
पर किसी शहर में अकेले जाने की बात सुन
माँ, बाबा का घबरा जाना ,
याद दिला देता है कि मैं लड़की हूँ .
मुझे तो याद नहीं रहता ,
पर बस में सफ़र करते किसी उम्रदराज़ को 
जगह न देकर बिना मांगे किसी का 
सीट पर थोडा खिसक जाना 
याद दिला देता है कि मैं लड़की हूँ ..........

8 comments:

आशुतोष की कलम said...

आप के ब्लॉग पर थोडा देर से आया व्यस्तता थी...सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ..
लिखतीं रहे इश्वर आप की लेखनी को शक्ति दे..
आप की नयी रचना का इंतजार रहेगा
...................
हिंदी कविता-कुछ अनकही कुछ विस्मृत स्मृतियाँ:कुछ बातें कृष्ण से

दीपक 'मशाल' said...

jhakjhor dene waali rachna.. hamen sach me apni maansikta badalne ki sakht jaroorat hai.

दीपक 'मशाल' said...

word verification hata dijiye please..

मदन शर्मा said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
वाह...किन शब्दों में इस अप्रतिम रचना की प्रशंशा करूँ...
बेजोड़..
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/

मदन शर्मा said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
वाह...किन शब्दों में इस अप्रतिम रचना की प्रशंशा करूँ...
बेजोड़..
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/

मदन शर्मा said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
वाह...किन शब्दों में इस अप्रतिम रचना की प्रशंशा करूँ...
बेजोड़..
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/

Rakesh Kumar said...

आपकी पोस्ट पर पहली दफा ही आकर मैं आपकी सुन्दर प्रस्तुति से अत्यधिक प्रभावित हूँ.लड़की होने के अहसास का आपने शानदार निरूपण किया है.
आपका बहुत बहुत आभार इस अनुपम प्रस्तुति के लिए.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा ,आपका हार्दिक स्वागत है.

Banjara said...

गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है ।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है ।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है ।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है ।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है ।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है ।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है ।